Thursday, June 25, 2009

``````````````परिवर्तन```````````

"बहता हुआ नदी था कभी ठहर गया सागर बनके,
खिलता हुआ कली था कभी मुरझा गया फूल बनके॥!
उगता हुआ सूरज था कभी डूब गया संध्या बनके,
शांत था समीर की तरह... बिखर गया तूफान बनके॥!
नादान था बचपन की तरह बहक गया जवानी बनके,    
लहर था संगीत की तरह टूट गया साज बनके॥!
स्वच्छा था गगन की तरह दूषित हुआ धरती बनके,
पवित्र था गंगा की तरह कलंकित हुआ झूठ बनके॥!
उदार था दानी की तरह गुजर गया ज़माना बनके,
रोशन था जीवन की तरह बुझ गया मो़त बनके....!!"

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