Wednesday, September 9, 2009

सागर क्या दूबोये हमें

डर नही मिल न पाने की हमे
डर तो हे मिल जाने की हमे,
मिल जाए जो ऐसा कही
गम हे फिर बिछड़ जाने की हमे..!

छूट गया वो रास्ता कही
गम से जो तारे हमे,
बिछड़ गया वो रही कही
गम से जो उतरे हमे..!

बहता जाऊँ नदी की तरह
फिर बंधन भी क्या रोक हमे,
समां जाऊँ आपने ही अन्दर
फिर सागर भी क्या दूबोये हमे …!!

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