Thursday, December 9, 2010

कसमकसमें...???

गुज़र गई हे जो ज़िन्दगी, उशे फिर पानेको दरबदर में फिरता हूँ 
आ जाये वो सुबह फिर से, हसरते इसकदर लिए मैं फिरता हूँ ,
खता जो हो गई हे हमसे, दफ़न है  वो  वक्त के उन पन्नो में 
उन्ही पन्नो की सोच लिए ख्यालों में अब दरबदर मैं  फिरता हूँ ,
निज़दों की काबिल तो ना हूँ मैं, उम्मीदें सजा लिए भटका भटका सा मैं फिरता हूँ 
बुझेना  बोझ मन में लिए ये सांसे, मौत से भी अब  मैं भगा भगा सा फिरता हूँ, 
पार कर गए है दरिया सभी, मज़ेधार में मैं बहेका-बहेका सा फिरता हूँ 
समय वह चला हे गति आपने लिए, और ठहराव मनकी कसमकसमें रुका रुका  सा मैं  फिरता हूँ ..!!



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