ज़िन्दगी को कही कुछ तो बसर मिल जाये,
सपने सजा लूं पर कुछ तो आसार मिल जाये..!.
जी लेता फिर मैं उन लम्हों में..
नज़रों से अगर उसकी नज़र मिल जाए..!!
चलते चलते कदम रुक जाती हे यू ही,
मंजिले फासले बन जाती हे यू ही,
नज़र दूरियौं को और करीब कर देती हे...
ठहराऊ धडकनों की बढ़ जाती हे यू ही..!!
मिल जाये वो जिनके लिये जीवन थका थका सा हे..
धड़कने खामोस हे, साँसे रूका रूका सा हे!
सफ़र वो फिर डगर बन जाये,
ज़िन्दगी में वो हमसफ़र बन जाये!
फिर मंजिल कहा, लम्हे कैसी..?
साँसों को नसों में लहराना छोड़ दूं...
नजरो में खाबों को बसाना छोड़ दूं..
छोड़ दूं हर वो चाहते, हर वो आरजू
और जीलूँ फिर उन खयलौं में,
वोह मिल रही हे, ज़िन्दगी मिल रहा हे … हाँ वोह आ रही हे,
ज़िन्दगी और करीब हो रही हे,
आहा!ये कैसा अहेसास हे... कैसा सूकून हे…??
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